रुद्र : भाग-१६
शाम के छह बज रहे थे। रुद्र आज पुलिस स्टेशन से जल्दी निकल गया था। घर पहुँचकर रुद्र ने दरवाजे की घंटी बजाई। कुछ देर बाद मुरली काका ने दरवाजा खोला। रुद्र उन्हें देख मुस्कुराया और अंदर दाखिल हुआ। उसने चारों ओर देखा, हॉल में कोई भी नहीं था।
"अरे, मुरली काका, ये सब लोग कहाँ गए? कोई दिख ही नहीं रहा है।" रुद्र ने यहाँ-वहाँ देखते हुए कहा।
"रुद्र बाबा, छोटे मालिक तो आठ बजे तक आएँगे, बड़े मालिक और मालकिन टहलने के लिए गए हैं, छोटी मालकिन अभी तक रसोई में ही थीं, अभी कुछ देर पहले छत पर गयी हैं।" मुरली काका ने सभी के बारे में बताते हुए कहा।
"छत पर क्यों?" रुद्र ने पूछा।
"वो छोटी मालकिन, शरण्या बिटिया और शिवान्या बिटिया छत पर कुछ देर टहलने गए हैं। आप बैठिए, हम पानी लेकर आते हैं।" मुरली काका ने रसोईघर की ओर कदम बढ़ाते हुए कहा।
"नहीं काका। पानी नहीं चाहिए। मैं कपड़े बदलकर एक बार छत पर हो आता हूँ।" रुद्र ने सीढ़ियों की तरफ जाते हुए कहा।
"ठीक है।" कहते हुए मुरली काका रसोईघर में रात के खाने की तैयारी करने चले गए।
रुद्र अपने कमरे में गया। कुछ देर बाद रुद्र कपड़े बदलकर बाहर आया। उसने काले रंग की हाफ टी-शर्ट और नीले रंग का जीन्स पहना हुआ था। हमेशा की तरह उसकी मांसपेशियाँ आज भी उभरी हुई नजर आ रही थीं। रुद्र भागता हुआ छत की ओर जाने वाली सीढ़ियाँ चढ़ने लगा। रुद्र छत के दरवाजे से बस दो सीढ़ियाँ दूर था, की अचानक वह रुक गया।
".....मधुराधिपते रखिलं मधुरं....मम्म।"
रुद्र के कानों में मधुराष्टकं के कुछ बोल पड़े। उस सुरीली आवाज को सुन रुद्र को काफी सुखद अनुभव हुआ। रुद्र उस मधुर आवाज में खो गया था। अचानक ही छत से आ रही तालियों की आवाज के कारण रुद्र की तंद्रा भंग हुई। वो तुरंत छत के दरवाजे से अंदर गया। वहाँ एक लकड़ी की खाट थी, जो अक्सर उनकी छत पर होती थी। खाट पर शिवान्या और रुद्र की माँ बैठी थीं। सामने शरण्या खड़ी थी। शरण्या ने गाढ़े पीले रंग की कुर्ती पहनी हुई थी। उसने अपना गाढ़े नीले रंग का दुपट्टा कमर पर बाँधा हुआ था। उसके बाल खुले हुए थे। उसके चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान थी। रुद्र एक बार फिर सब कुछ भूलकर शरण्या को देखने लगा। अचानक रुद्र को लगा जैसे किसी ने उसे पुकारा हो। रुद्र ने देखा अंजना जी उसे बुला रही हैं। वह मुस्कुराता हुआ आगे बढ़ा और जाकर अंजना जी के पास खड़ा हो गया। उसका ध्यान शिवान्या पर भी गया। शिवान्या ने नारंगी रंग का टॉप और नीली जीन्स पहनी हुई थी।
"आज जल्दी आ गया बेटा?" अंजना जी ने मुस्कुराते हुए पूछा।
"हाँ माँ, बस अभी दस मिनट पहले ही आया हूँ। मुरली काका ने बताया कि आप लोग यहाँ हैं, तो बस चला आया।" रुद्र ने कहा।
"आप थोड़ा और पहले आते तो दी का मस्त भजन सुनने को मिलता।" शिवान्या ने कहा।
"हाँ मैंने आते हुए आवाज सुनी थी। तो आप मधुराष्टकं गा रही थीं?" रुद्र ने प्रशंसा भरी नजरों से शरण्या को देखा।
"जी।" शरण्या ने मुस्कुराते हुए संक्षिप्त सा उत्तर दिया।
"बड़ी ही प्यारी आवाज है शरण्या की। आ तू भी बैठ। या कोई जरूरी काम है?" अंजना जी ने कहा।
"नहीं, आज कोई खास काम तो नहीं है। कुछ फाइल्स लाया था, स्टडी करने के लिए। मगर अब उनकी जरूरत नहीं है।" रुद्र ने आर्या के बारे में सोचते हुए कहा।
"मतलब आज तुझे ज्यादा काम नहीं है। एक काम करेगा बेटा?" अंजना जी ने कहा।
"हाँ! आप बोलिए क्या करना है? कुछ सामान वगैरा लाना है क्या?" रुद्र ने पूछा।
"नहीं, सामान नहीं लाना है। तू आज इन दोनों को कहीं घुमा ला। तालाब तक चला जा।" अंजना जी ने शरण्या और शिवान्या की ओर इशारा करते हुए कहा।
"हाँ, ठीक.......क......क्या!? म....मैं लेकर जाऊँ?" रुद्र ने हैरान होकर कहा।
"हाँ। बेचारी दोनों जब से आई हैं, बस घर में ही तो बंद हैं। बाहर जाएँगी तो इन्हें भी अच्छा लगेगा। और इतने टाइम तालाब से ज्यादा अच्छी जगह हो ही नहीं सकती है घूमने के लिए। लिए जा ना इन्हें।" अंजना जी ने प्यार से कहा।
"आखिर मैं डर क्यों रहा हूँ? शरण्या जी तो कितनी शरीफ हैं। हाँ, ये शिवान्या थोड़ी शरारती है, लेकिन इतना तो पक्का है कि इन दोनों में से कोई भी मुझे खाएगा नहीं। बस! अब डरना बंद। अब मैं इनके सामने बिल्कुल नहीं डरूँगा!" रुद्र ने अपने मन में कहा।
"क्या सोच रहा है?" अंजना जी ने रुद्र का हाथ हिलाते हुए कहा।
"क.....कुछ नहीं। ठीक है। मैं ले चलता हूँ आप दोनों को। आप लोग चलकर फ्रेश हो जाइए, तब तक मैं आता हूँ।" कहते हुए रुद्र छत से नीचे चला गया।
रुद्र अपने कमरे में गया। उसने अलमारी में से अपना ब्राउन कलर का जैकेट निकाल कर पहना। टेबल से गाड़ी की चाभी और ड्रावर में से अपनी गन लेकर नीचे चला गया। कुछ देर बाद शरण्या और शिवान्या भी आ गईं। अंजना जी भी वहीं खड़ी थी। रुद्र, शरण्या और शिवान्या घर से बाहर निकले और गाड़ी में जाकर बैठ गए। रुद्र की बगल वाली सीट पर शरण्या थी और पीछे शिवान्या।
"हम थोड़ी देर में आ जाएँगे माँ। बाय!" कहते हुए रुद्र ने गाड़ी गेट से बाहर निकाल दी।
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कुछ देर बाद रुद्र, शरण्या और शिवान्या तालाब के पास पहुँच गए थे। वहाँ उसी इलाके के कई लोग और भी थे। उनमें से कुछ रुद्र के पिता के मित्र भी थे, जिन्हें रुद्र को बार-बार शरण्या और शिवान्या का परिचय देना पड़ रहा था।
रुद्र और शरण्या बेंच पर बैठकर डूबते हुए सूरज को देख रहे थे। आसमान हल्के नारंगी रंग में नहा गया था। लोग आपस में बातें कर रहे थे। वातावरण में ठंड थी। शिवान्या अपने फोन से तालाब की और आसमान की तस्वीरें ले रही थी।
"यहाँ सब कुछ कितना अच्छा है ना?" शरण्या ने आसमान में देखते हुए कहा।
"हाँ। हम चारों हफ्ते में एक-दो बार यहाँ आ ही जाते हैं। काफी शांति मिलती है यहाँ।" रुद्र ने मुस्कुराते हुए कहा।
"चारों?" शरण्या ने रुद्र की ओर देखकर पूछा।
"हाँ। अभय से तो आप मिल ही चुकी हैं, बाकी मेरे दो और खास दोस्त हैं, विराज और विकास। हम चारों बचपन से ही साथ में हैं। और नसीब इतना अच्छा था कि अब हम चारों ही पुलिस में हैं। विराज एसपी है और विकास, सीनियर इंस्पेक्टर।" रुद्र ने मुस्कुराते हुए कहा।
"वाह! ये तो बहुत अच्छी बात है।" शरण्या ने कहा।
तभी अचानक रुद्र का फोन बजा। रुद्र ने फिन निकालकर देखा। विराज फोन कर रहा था। रुद्र ने फोन उठाकर कहा, "हाँ, बोल विराज।"
कुछ देर तक रुद्र विराज की बातें सुनता रहा। शरण्या रुद्र को देख रही थी। अब तक शिवान्या भी वहाँ आ चुकी थी।
"इतनी सी बात के लिए तू इतना परेशान मत हो विराज। कल का कल देखेंगे। वैसे ये मीटिंग है कितने बजे?.........सुबह दस बजे। ठीक है। बाए।" कहते हुए रुद्र ने फोन काट दिया।
"क्या हुआ? कोई परेशानी है क्या?" शरण्या ने पूछा।
"नहीं। वो तो बस कल एक मीटिंग है, मानवाधिकार समिति वालों के साथ। इसलिए विराज का फोन था।" रुद्र ने कहा।
"मानवाधिकार समिति के साथ मीटिंग? क्यों?" शिवान्या ने पूछा।
" वो मैंने तीन एनकाउंटर किए हैं, और कल एक कैदी की उँगलियाँ तोड़ दी थी। बस इसलिए कल मीटिंग है।" रुद्र ने बिना किसी चिंता के कहा।
रुद्र की बातें सुनकर शरण्या और शिवान्या एक दूसरे को हैरान होकर देखने लगीं। उनके हिसाब से रुद्र तो काफी शांतिप्रिय था। लेकिन उन्हें उसके गुस्से का अंदाजा नहीं था।
"इतना मत सोचिए। वो उस वक्त मुझे गुस्सा आ गया था और उन लोगों ने काफी संगीन अपराध भी किए थे।" रुद्र बेंच से उठते हुए बोला।
"मतलब कल तो आपको काफी परेशानी होगी ना?" शरण्या ने कहा।
"नहीं। वो तो उन समिति वालों को होगा। खैर, शरण्या जी, कल आपको हॉस्पिटल कितने बजे जाना है?" रुद्र ने पूछा।
"बारह बजे। क्यों?" शरण्या ने कहा।
"नहीं। बस ऐसे ही। वो कल मैं सुबह सात बजे निकल जाऊँगा। लेकिन आप चिंता मत कीजिएगा, मैं टाइम पर आ जाऊँगा। अब घर चलें?" रुद्र ने पूछा।
"हाँ, चलिए।" शरण्या और शिवान्या ने एक साथ मुस्कुराते हुए कहा।
रुद्र, शरण्या और शिवान्या गाड़ी में बैठ गए। रुद्र उन्हें लेकर घर चला गया।
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वह एक बड़ा-सा कमरा था। मुख्य दरवाजे से घुसते ही थोड़ा आगे, कमरे में दोनों ओर तीन-तीन कुर्सियाँ रखी गई थीं। बायीं ओर मानवाधिकार समिति के ओर से एक महिला और दो पुरूष थे। महिला ने साड़ी पहनी हुई थी। माथे पर एक मध्यम आकर की बिंदी थी। उम्र से वो महिला पैंतीस साल से ज्यादा नहीं लग रही थी, मगर चेहरे पर एक अलग ही गुस्सा झलक रहा था। उन दोनों पुरुषों ने काले रंग का सूट पहना हुआ था। उनमें से एक की उम्र लगभग तीस की थी और दूसरे की चालीस।
दाहिनी ओर वाली कुर्सियों पर कमिश्नर वी. एस. खन्ना, डीसीपी विक्रम कुमार और एसपी विराज बैठे हुए थे। डीसीपी विक्रम की उम्र पैंतालीस साल थी। चेहरे पर एक अलग ही तेज था। उनकी मूँछें थी।
"कमिश्नर साहब, कहाँ है आपका ऑफिसर? पहले ही इतने गुनाह किए हैं, और अब यहाँ भी समय से नहीं पहुँचा।" उस महिला ने थोड़ा गुस्से से कहा।
कमिश्नर साहब ने घड़ी की ओर देखा। दस बजकर पाँच मिनट हो रहे थे। कमिश्नर साहब ने कहा, "बस वो अभी आता ही होगा।"
"देरी के लिए माफी चाहता हूँ।" रुद्र कमरे में दाखिल होता हुआ बोला। उसके हाथ में एक फाइल थी।
"आओ रुद्र। ये हैं मंदिरा देवी जी, मानवाधिकार समिति की हेड। उनकी दायीं तरफ हैं प्रकाश झा जी, और बायीं ओर राजेश वर्मा जी, ये दोनों समिति की देखरेख करते हैं।
"गुड मॉर्निंग। माफ करना थोड़ी देर हो गयी।" रुद्र ने मंदिरा जी की ओर देखकर कहा।
"अब चर्चा शुरू करें?" मंदिरा देवी ने कहा।
"जी बिल्कुल।" रुद्र ने मुस्कुराते हुए कहा।
"आपने किस हक से तीन लोगों से उनकी जिंदगी छीन ली? शेरा के बाद हमने सोचा आप शांत रहेंगे। मगर आपने एयर दो लोगों को मार दिया और तो और कल लॉकअप में जाकर रघु की उँगलियाँ तोड़ आए। कब तक चलेगा ऐसा?" मंदिरा देवी ने गुस्से से कहा।
"आपके इन सवालों का जवाब देने से पहले मैं चाहूँगा की आप सभी एक नजर इस फाइल पर डालें।" रुद्र ने फाइल खोलते हुए कहा।
"क्या है इस फाइल में सर?" विराज ने औपचारिकता से पूछा।
"इसमें कुछ पुरानी न्यूज़ पेपर की कटिंग्स हैं। एक है, जिसमें खबर है पिछले साल हुई बैंक लूट की। उसमें चार लोगों ने बंदूक की नोक पर बैंक लूटा था और साथ ही एक पुलिस हवलदार के हाथ पर दो गोलियाँ भी चलाई थी। आज वो हवलदार घर पर बैठा है। एक हाथ नहीं है अब उनका। लेकिन शायद आपको इस केस के बारे में पता नहीं चला, क्योंकि उस वक्त आपने कोई टिप्पणी दी ही नहीं।" रुद्र ने कहा।
"आप कहना क्या चाहते हैं?" मंदिरा जी ने गुस्से से कहा, लेकिन उनकी आँखों में हल्का-सा डर दिख रहा था।
"रुकिए रुकिए! अभी और बाकी है। कुछ सात महीने पहले, दो लोगों ने एक बस को हाईजैक कर लिया था। उस बस में बीस लोग सवार थे। उन लोगों को बचाने के लिए इंस्पेक्टर राजवीर ने एक अपराधी का एनकाउंटर कर दिया था, और दूसरे के पैर पर गोली मारी थी। उस केस की खबर आप तक पहुँच गयी और आप अपना पूरा महकमा लेकर इंस्पेक्टर राजवीर के ऊपर चढ़ गई थीं। उस बेचारे ने अंत में परेशान होकर अपना ट्रांसफर ट्रैफिक डिपार्टमेंट में करवा लिया। और इस तरह हमने एक बहादुर ऑफिसर को खो दिया। आज वो बेचारा सिग्नल पर खड़ा होकर गाड़ियों को हाथ दिखाता है।" रुद्र ने निराश होकर कहा।
"आप इन सब से साबित क्या करना चाहते हैं?" प्रकाश ने गुस्सा दिखाते हुए कहा।
"यही की हो सके तो थोड़ा ध्यान उन अपराधियों की गलतियों पर भी दीजिए और हम पुलिसवालों को भी मानवों की श्रेणी में ही समझिए।" रुद्र ने हाथ जोड़कर विनम्रता से कहा।
"आप मानवाधिकार समिति की योग्यता पर सवाल उठा रहे हैं?" राजेश ने थोड़ी तेज आवाज में पूछा।
"नहीं नहीं! मैं मानवाधिकार समिति का सम्मान करता हूँ। वैसे भी इस फाइल में इस तरह के मामले पिछले एक साल में ही हुए हैं। जब श्री जयनारायण जोशी जी हेड थे, तब तो सच में मानवों के अधिकार के लिए लड़ाई होती थी। अब तो......।" रुद्र ने अपनी बात अधूरी छोड़ते हुए मंदिरा जी की ओर देखा।
मंदिरा जी इस बात पर कुछ कहने के बजाए नजरें चुराने लगीं। कुछ देर बाद उन्होंने कहा, "हो सकता है कुछ मामले हमारी नजरों से छूट गए हों। हम अगली बार ध्यान रखेंगे। मगर, क्या आप इस तरह से एनकाउंटर करते ही रहेंगे?" मंदिरा जी ने शांत स्वर में कहा।
"जी नहीं। मानता हूँ गलती मेरी भी है। अगर मैंने शेरा को मारने के बजाए पकड़ लिया होता तो शायद आर्या के बारे में कुछ पता चल जाता। लेकिन उस वक्त मुझे मजबूरन वो कदम उठाना पड़ा। और जहाँ तक भविष्य की बात है, तो इसमें मैंने सब कुछ स्पष्ट रूप से लिख दिया है।" रुद्र ने अपनी फाइल में से दो पेपर निकालकर, एक कमिश्नर खन्ना और एक मंदिरा जी के टेबल पर रख दिया।
कमिश्नर ने और मंदिरा जी ने वो पेपर उठाकर पढ़ना शुरू किया। तभी रुद्र ने कहा, "इसमें मैंने लिखा है, की अगर मैंने किसी भी बलात्कारी को पकड़ा, तो मैं उसे उड़ा दूँगा। अगर कोई किसी महिला, बुजुर्ग, बच्चे या फिर पुलिस पर निशाना लगाता हुआ दिखा तो वो भी शायद मारा जाए। कोई आतंकवादी अगर सच नहीं बताएगा तो मैं उसे जरूर पिटूँगा। और भी है दो-तीन श्रेणियाँ हैं। अब अगर इससे कमिश्नर साहब, या डीसीपी साहब को कोई परेशानी है तो वो मुझे बताएँ, मैं उसे सही करूँगा। और.....रही बात मंथरा जी....... अ..... मेरा मतलब मंदिरा जी की, अगर आपको कोई परेशानी है, तो वो आपकी परेशानी है। उससे मुझे कोई सरोकार नहीं। अगर आप उस परेशानी से छुटकारा पा सकती हैं तो ठीक, वरना उसके साथ जी लीजिए।" रुद्र ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा।
मंदिरा जी गुस्से से आगबबूला हो गई। वो तिलमिलाती हुई कुर्सी से उठी और रुद्र को घूरते हुए वहाँ से चली गयी। प्रकाश और राजेश भी पीछे-पीछे चले गए। कमिश्नर खन्ना और डीसीपी विक्रम उन्हें जाता देख मुस्कुरा रहे थे।
"वाह रुद्र। तुमने तो मुँह ही बंद कर दिया इस मंदिरा का।" डीसीपी विक्रम ने कहा।
"थैंक यू सर।" रुद्र ने मुस्कुराते हुए कहा।
"वैसे रुद्र तुम्हें ये न्यूज़ पेपर के कटिंग कहाँ से मिले?" कमिश्नर खन्ना ने पूछा।
"सर मुझे विराज ने कल शाम को ही इस बारे में बता दिया था। इसलिए मैंने सोचा कुछ तैयारियाँ कर लूँ। बस इसलिए मैं सुबह सात बजे ही न्यूज़ पेपर के ऑफिस में पहुँच गया और बस ले आया इन्हें।" रुद्र ने कहा।
"वाह!" विराज ने खुशी से कहा।
रुद्र ने देखा साढ़े ग्यारह बज चुके थे। उसे याद आया कि उसे शरण्या को हॉस्पिटल लेकर जाना है। उसने कहा, "सर मुझे एक जरुरी काम है। अगर परमिशन हो तो मैं जाऊँ? बस दो घंटे के लिए।"
"हाँ हाँ! जाओ रुद्र।" कमिश्नर साहब ने मुस्कुराते हुए कहा।
रुद्र विराज को वो फाइल देकर वहाँ से तुरंत निकल गया।
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अमन मिश्रा
🙏
BhaRti YaDav ✍️
30-Jul-2021 06:49 AM
Nice
Reply
🤫
07-Jul-2021 05:13 PM
बहुत शानदार!!अच्छी कहानी,बढ़िया शैली..कीप इट अप..!!
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